आहत भाग 169

169

दीपेन्द्र कहता है कि मैं भी तो एक जीती जागती रूह ही हू

मैं रूह से नहीं डरता वे किसी को बिना कारण नुकसान नहीं पहुंचाया करती

मैं कहता हू की तुम चले जाओ वर्ना यहाँ कैद होकर रह जाओगे कभी मुक्ति नहीं मिल पाएगी ना मरने के बाद न जीते जी

यही कहीं तुम्हारी भी कब्र बन जाएगी चलो निकलो यहां से

यहां जो होता है तुम उसे देख नहीं सकोगे

दीपेन्द्र हंस कर कहता है कि तुम जाओ

लेकिन तुम्हें यहां से जाना होगा

मैं यहाँ का पहरेदार हू मैं किसी को यहाँ रहने नहीं देता

दीपेन्द्र कहता है मैं अपनी खुद की जिम्मेदारियां लेता हू जो भी कुछ होगा मुझे होगा मैं नहीं जाऊँगा बस तुम जाओ यहाँ से

मेरा कोई घर नहीं कोई नहीं मेरा मुझे यहां जगह मिली है मैं यहीं पर रहूँगा

अच्छा ठीक है मैं जाता हू अगर सुबह तक तुम जिंदा मिले तो मुलाकातें होंगी और वो वहाँ से चला जाता है क्रमशः

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