
मैं अकेली बैठी हू,अकेली ही रहती हू अक्सर
लेकिन मैं ये सोचती हू की मैं अकेली नहीं हू
मेरे साथ मेरी सुंदर सुंदर यादें है
कुछ उलझन भी होती है
ये अकेलापन मुझे आज से ही नहीं है
मेरी कुछ प्रकृति भी है
भीड़ बाह्य दुनिया में बहुत है
पर मैं इकट्ठी नहीं करती
अभी मैं चाहूँगी तो कितने मेरा सिर खाने आ जाएंगे
मैं क्यों अकेली हू
मुझे चापलूसी पसंद नहीं
मैं ना किसी से कुछ लेना चाहती हूं और न किसी को कुछ देना चाहती हू
मैं क्यु अकेली हू
मुझे आगे बढ़ने मे किसी से होड़ नहीं है मेरे पास जो कुछ भी है पर्याप्त है
मै अकेली हू क्योंकि मैं किसी की सहती नहीं और कभी किसी को कुछ कहती नहीं
लेकिन मैं अकेली नहीं हू आप सब मेरे साथ है मेरे दुख को सुनते है और अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, मैं खुश हू, संतुष्ट हू
एक ना एक दिन सबको अकेला होना पड़ता है
उम्र गुजरने और परिस्थितियों के बदलने से लोग भी बदल जाते है
लेकिन अभी लोग नहीं बदले लेकिन मैंने खुद को ही बदल डाला
मेरी जरूरत है लेकिन बहुत ही कम है
मैं गरीबी से पाली गई हू इसलिए कुछ ख्वाहिश नहीं है
कुछ ही जरूरी वस्तुएं है, कीमती वस्तुओं से परहेज करती हू
उतनी नम्र नहीं हू मैं
ज्यादा कठोर भी नहीं हू मैं सबका कष्ट समझती हू सबकी भावनाएं समझती हू
जब भीड़ से दूर हू तो कोई मेरी भावनाएं आहत नहीं कर सकता
आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद
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