मेरी आदत एक बचपन की थी

एक आदत मेरे बचपन की थी जिससे मैं सुबह सुबह ही मार खा जाती थी

वो थी कि मैं सुबह सुबह उठती थी और गेट खोल कर बाहर निकल जाती थी

वहाँ पर कुतिया ने 6 बच्चे दिए थे जो बड़े प्यारे लगते थे उनकी आंखे खुल चुकी थी कुछ काले थे, कुछ भूरे थे और कुछ चितकबरी थे

मैं एक रोटी सबकी आंख बचाकर उनके लिए फ्राक मे छुपा कर ले जाती थी

और वे खाने लगते थे तभी मैं एक सुन्दर से बच्चे को उठाने की कोशिश करती थी और तब वो सब मेरे पीछे लग जाते थे यहां तक कि कुतिया भी उनके पीछे पीछे मेरे घर तक आ जाती थी बच्चे मेरे घर मे गेट के छेद से घुस जाते थे और पूरे घर मे दौड़ने लगते थे

पापा देखते थे बस मुझे दो थप्पड़ मार देते थे

मैं इसी आदत के कारण मार खाती थी

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